शादी से पहले शारीरिक संबंध बनाने से क्या होता है?
शादी से पहले शारीरिक संबंध बनाने से क्या होता है?
शादी से पहले शारीरिक संबंध बनाने से क्या होता है? यह एक ऐसी सामाजिक और नैतिक विषय है, जिस पर हमें जानना और समझना जरुरी है। आइए आज हम जानेंगे शादी से पहले शारीरिक संबंध बनाने से क्या होता है?
हम और हमारे समाज
मानव जगत एक संवेदनशील और समझदार जगत हैं। वैसे तो मानव जाती ने युगों युग पार कर चुका है। चूंकि शुरु से ही मानव मे फीलिंग्स थे, तभी तो मानव जाति का विकास हुआ है और आज हम सभ्य समाज में जीवन बसर कर रहे हैं।
अगर हम अपने देश भारत के बारे में बात करें तो दुनिया के सबसे मजबूत समाज के रुप में भारत को देखा जाता है। क्योंकि भारत में शुरु से ही यहाँ के ऋषि मुनियों नें सभ्य समाज नीर्माण में अहम भूमिका निभाया है।
इस समाज को आगे बढाने की जीम्मेदारी भी हमारी ही बनती है। एक एक ब्यक्ती मीलकर परिवार बनता है, एक एक परिवार मीलकर समाज बनता है और समाज मिलकर देश बनता है।
विविधता से भरे हमारे देश में, चाहे वह अलग धरम का हो या जाती सब आत्मसम्मान के साथ जीते है। हम सभी को रिश्ते नाते नीभाने होते है और एक दुसरे से खुश रहना होता है।
क्योंकि नैतिक मूल्य और मान्यता ने आज भी हमारे समाज में और जीन्दगी में बहुत मायने रखती है। लेकिन इन सब चिजों को हमें ही नीभाना और पालन करना पड़ता है।
बढ़ते हुए किशोर किशोरीयों को सही दिशा और शिक्षा दें
अगर देखा जाए तो दुनिया भर में बच्चों को यौन शिक्षा देने के लिए आवाज उठ रहे हैं। यौन शिक्षा एक व्यापक शब्द है जिसका उपयोग मानव शरीर अन्तर अंग, शारीरिक संभोग,यौन व्यवहार और प्रजनन के बारे में शिक्षा के माध्यम से बयाँ किया जाता है।
हालांकि कई पश्चिमी देशों ने बच्चों को यौन शिक्षा दे रहें है और भारत में भी वर्ष 2007 में किशोर शिक्षा कार्यक्रम का शुरुआत किया है। इस कार्यक्रम का लगातार विरोध होता रहा और कई सारे राज्य ने इस कार्यक्रम को बंद भी कर दी। इस विषय पर अब कुछ गीनेचुने सरकारी और प्राइवेट स्कूल पर ही पढाया जा रहा है।
प्रमुख सवाल - किन उम्र के बच्चों को यौन शिक्षा दें
इस सवाल के जवाब में अलग अलग राय देखने को मिलती है। वैसे तो बच्चें जब 13 साल के हो जाए तो उनके शरीर पर परिवर्तन आने लगता है। और इसी वजह से उनके मन में भी हजारौं सवाल और जीज्ञासा उठने लगता है।
जब इन्ही सवाल और जीज्ञासा दिल और दिमाग में घर कर जाए तो बच्चों के मन कुंठित होने लगता है और गलत आदतों के शीकार होने का संभावना भी बना रहता है। इस वजह से भी यौन शिक्षा का महत्व को बल मिलता है।
चूंकि आज का दौर आज का जमाना बदल गया है। आज का विकसित समाज के विकसित लोंगों का जीवनशैली और रहन सहन भी बदल गया है। आज के जमाने में 10/12 साल में ही बच्चे बडे हो जाते हैं।
बाकी इन्टरनेट का दौर, उच्च तकनीकी घर का हरेक सदस्य का आपना स्मार्ट फोन और सस्ता इन्टरनेट ने बडों को हि स्मार्ट नहीं बनाया बल्कि बच्चों को भी स्मार्ट बना दिया है।
परन्तु बच्चे तो बच्चे हि होते हैं, सहि और गलत का मुयाना बच्चे नहीं कर पाते और इन्टरनेट में जो आता वही देखते हैं। इसलिए भी बच्चों को यौन शिक्षा की आवश्यकता नजर आती है। क्योंकि इन्टरनेट में जो जो देखते है और मन में शंका पैदा होता है, वही शंकाएं यौन शिक्षा द्वारा दूर किया जा सकता है।
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इसलिए बढते हूए बच्चों को स्कूल में हि नहीं बल्कि घर में भी माता पिता ने सहि मौका देखकर बिच बिच में अच्छा और बुरा समझाना चाहिए। ताकी यीन विषयों पर बच्चे भी अपने अविभावक से खुल कर बात कर सकें। क्योंकि बात करने से हि समस्या का समाधान किया जा सकता है।
जब बच्चे किशोरावस्था में प्रवेश करते हैं तब उनमें शारीरिक परिवर्तन होना शुरू होता है। ईन्सान का सब से नाजुक उम्र भी यही है। बच्चों का ईसी उम्र पीरियड में बडों का भी उन पर खास नजर बने रहना चाहिए ताकी बच्चे कुछ गलत न सीखें, इसके साथ सहि और गलत का भी जानकारी मीलते रहें।
क्योंकि किशोरावस्था हि युवावस्था का प्रारम्भिक काल होता है। बच्चे किशोर अवस्था में जो सीखेंगे वह युवावस्था में अजमाना चाहेंगे। क्योंकि युवावस्था में ईन्सान अपनी आप को सबसे वलवान समझता है ओर जो मन में आए वही सहि समझ बैठता है।
युवाओं का बदलता दौर
वैसे तो आज का जमना बदल सा गया है। युवा लोग स्वतंत्र तरीके से जिना चाहते है। उन्हे आजादी पसंद होता है। वह युवावस्था में मोज और मस्ती करना चाहते है।
लेकिन जब शादी का मामला आता है तो अपनी पाटनर राम और सीता की तरह पवित्र और चरीत्रवान चाहिए होता है। यह सब तब संभव है जब हम सब नैतिकता के हद नहीं नाघेंगे।
चूंकि यह ऐसी विषय है जो, कोई भी बाहर लाना नहीं चाहता है। ऐसी विषय बाहर आने पर श्रीफ ब्यक्ती की नहीं बल्कि पूरी परीवार की इज्जत जाने का डर बना रहता है।
युवावस्था ईन्सान का ऐसा दौर है जब कोई भी ब्यक्ती कुछ करने से पहिले बाद में होने वाले अंजाम के बारे में नहीं सोचता है। ईसी वजह से बाद में पछताना भी पड़ता है और जीन्दगी भी नर्क बन जाती है।
इसी विषय पर मैं यहाँ छोटा सा सच्ची कथा लेखने जा रहा हूं
एक कस्बे में एक कॉलेज स्टुडेंट लडका और लड़की की गहरी दोस्ती थी। यह दोनों एक दूसरे का अच्छा ख्याल रखते थे। एक दुसरे का भावनाओं का भी सम्मान करते थे, यह दोनों का दोस्ती प्यार में बदल गया। यह दोनों ने कालेज खत्म होते ही शादी करने का फैसला किया।
इसी दौरान इन लोगों को एक पल भी दूर रहना मुश्किल सा होने लगा। कालेज खत्म होने के बाद भी रोजाना कहीं न कहीं सुनसान एकान्त जगह में मीलने लगे। इस तरह से इन दोनों और भी करीब आने लगे और जाने अनजाने में शारीरिक संबंध भी शुरु हो गई। यह सीलसीला भी इन दोनों का चलता रहा और कॉलेज खत्म होते ही शादी भी करली।
शादी के बाद जीन्दगी शुरू हो गई। अब घर परीवार की जीम्मेदारी और करीअर का सवाल भी था, नौकरी ढुडना भी शुरु हो गई। दोनों को अलग अलग नामी कंपनी में नौकरी भी मील गई ।
तब से इन दोनों की मुसीबत शुरु हो गई। दिन भर नौ दश घंटे एक दुसरे से दूर रहना और मनचाहे समय पर फोन पर भी बातचीत न हो पाने से एकेलेपन का महसूस होने लगा। अगर सच कहा जाए तो "अकेलापन" ऐसी बिमारी है जीसने जीन्दगी की तहस नहस करके रख देती है।
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सायद इसी वजह प्यार के आदि वह कपल को अपने अपने अफीस में हमदर्द मील गय। और वह हमदर्दी, दोस्ती का सफर पार करते करते प्यार और बिस्तर पर जा पहुंचा। चूंकि यह गलत था। एक न एक दिन यह बात एक-दुसरे को पता चलना ही था सो पता चला।
उसके बाद इन दोनों के बिच झगड़े शुरू हूए, एक दुसरे को गलत साबित करने की होड सी लगी। झगडे इतने में ही नहीं रुकी। हमारे पुरुष प्रधान समाज में महिलाओं का गलती ज्यादा दिखाया जाता है। इसलिए लडकी को हि चरीत्रहिन का तबका लगाना पडा और दोनों की तलाक हो गई और डीप्रेसन में भी चले गए।
शादी से पहले शारीरिक संबंध वैवाहिक रिश्ते को बर्बाद कर
सकता है।
अगर सच कहें तो आज भी हमारे समाज में लोग यह सोचते हैं कि उनके साथ लडकी सब कुछ करें, लेकिन शादी की बात आये तो उन्हे सीता और सावित्री की तरह बिबि चाहिए।
कुछ साल पहले तक तो भारत के कई राज्य में लड़कियों का कुवांरापन जाचने का प्रथा भी था। सायद वह प्रथा लडकियां के लीए अभीषाप था। क्योंकि कई लोगों का शारीरिक अवश्था की वजह से भी कुवांरी साबित नहीं कर पाते थे।
लेकिन यह प्रथा नहीं होने से वा हटने से ही समस्या का समाधान नहीं होता है। क्योंकि सुहागरात के दौरान ही दुल्हे को अपनी दुल्हन कुवांरी होने वा नहीं होने का पता चल जाता है।
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वैसे लड़के का कुवांरापन का मापन करना हर कीसी की वश की बात नहीं है। लेकिन लडकी का आसान होता है। अगर लडकी में कुवांरापन पाया नही गया तो समझना की दोनी की जीन्दगी में तुफान सा आ जाता है।
क्योंकि कोई भी लडका अपनी दुल्हन को उस हालात वाली देखना नहीं चाहेगा। और वह बात आसानी से घर वाले और बाहर वाले को भी बताया नहीं जा सकता।
इसी वजह से सायद लड़का डीप्रेसन में चला जाएगा और मारपीट करना ताने देना शुरु हो जाएगा और घरेलू हिंसा की भी नौबत आ जाती है।
इतना ही नहीं, अगर शादी से पहले ही शारीरिक संबंध बनाने की आदत लगी तो सायद वैवाहिक जीवन में भी यह आदत न छूट जाएं! क्योंकि शारीरिक संभोग एक ऐसी कृया है जो शादी के बाद ही सहज तरीके से किया जा सका है।
अगर शादी से पहले यह सब होने का मतलब अपना चरित्र त्यागना होता है जी के लिए बहुत बड़ा साहस होना होता है। यदी जीवन में यही साहस आ गई तो आगे भी साहस आने में कोई दिक्कत नहीं आती है।
इसलिए इन सब चिजों से सभी लोगों को बचना और बचाना चाहिए। क्योंकि संभोग जीन्दगी का एक हिस्सा जरुर है लेकिन संभोग हि जीन्दगी नहीं है। किसी को भी यौन ख्यालों से बचना चाहिए। रोजमर्रा की जीन्दगी में व्यस्त और मस्त रहना चाहिए। रिश्ते और नाते को बखूबी से निभाना चाहिए।

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